Madhu Arora

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अनोखी किस्मत

भाग 6
 अनोखी किस्मत 
 
 
अभी तक आपने पढ़ा, जसपाल और राधिका की शादी हो गई और जसपाल वापस अपनी ड्यूटी पर चला गया।

बाढ़ पीड़ितों के बचाव कार्य  मे जसपाल की ड्यूटी लगी थी, उसने अपनी हिम्मत और सूझबूझ से बहुत से लोगों की जान बचाई थी ।लेकिन एक दिन पानी का बहाव इतना ज्यादा था एक बच्चे को बचाते हुए जसपाल खुद को नहीं संभाल सका, पानी के तेज बहाव के साथ बह गया।
और  दो दिन के बाद बड़ी मुश्किल से उसका मृत शरीर मिला।

राधिका पर तो मानो जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था वह बेचारी तो पहले ही किस्मत की मारी थी।

 पति का परिवार मिला पति का प्यार मिला तो वह भी चंद दिन का ।
 वह  खुद को संभालें  या अपने ससुर को। जैसे तैसे उसने खुद को दिलासा दी थी,और अपने ससुर को संभालने लगी।
 
वह अन्दर ही अन्दर पूरी तरह टूट गई।

 जसपाल की अस्थियों का विसर्जन करने हरपाल जी और मोहनलाल जी हरिद्वार जाते हैं।लेकिन कहते हैं ना जब दुखों का पहाड़ टूट ता है तो एक साथ टूटता है।
 
 किसी गांव के आदमी ने राधिका को यह खबर दी।
 
 लौटते समय उनकी रेल गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई और राधिका को को जब यह खबर पता चली तो वे बदहवास सी अपने मामा और ससुर जी को ढूंढने चल दी।
 
 पूरे दिन पागलों की तरह लगी रही ।
 
 तब जाकर उसे अपने मामा का मृत शरीर मिला, और दूसरे दिन ससुर जी का ।
 
 अब तो  राधिका के आगे कोई भी रास्ता नहीं रह गया।  उसके आगे पीछे कोई नहीं था ।जिसे अपना कहती कोई भी तो नहीं बचा था। उसे अपना कहने वाला  समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें कोई भी रास्ता नहीं सूझ रहा था एक ही पल में उसकी सारी दुनिया उजड़ गई।
 
 अपने दिमाग का संतुलन खो बैठी और नदी में छलांग लगा दी हुई थी तभी कुछ बच्चों ने उसको बाहर निकाला ,
 एक बच्चा नंन्दू अपने दोस्त शेरू के साथ वहां आया हुआ था।
 
 राधिका को देखकर थोड़ा  पास जा पहुंचा ।
 और बोला अरे शेरू मेरी मांँ आ गई। यह मेरी माँ ही है।
 बाबा कह रहे थे कि तेरी मां इतवार तक आ जाएगी और आज इतवार ही तो है शेरू‌‌तू ऐसा कर वापस घर जाकर बाबा को लिया ।
 
तभी हम मां को घर ले जा सकते हैं,

 शेरू नन्दू के घर गया और बच्चे के पिता को ले आया बच्चे के पिता  राधिका को देखकर बोले ना जाने कौन है बेचारी यहाँ कैसे पहुंची जिंदा भी है या नहीं?
 
 उन्होंने राधिका की नब्ज टटोली राधिका की सांसे अब तक चल रही थी उन्होंने राधिका को गोद में उठाया और बच्चे से बोले "पहले मैं इन्हें वैध जी के पास लेकर जाऊंगा इनकी तबीयत खराब है।"
 
  नंन्दू तुम भी मेरे साथ वैध जी के यहांँ चलो तो  नन्दू कहने लगा लेकिन बाबा यह मेरी माँ ही है ना आपने कहा था ना कि माँ इतवार को आएगी और आज इतवार है ना बस अपनी बात बोलजा रहा था यह मेरी मांँ है ना बेटे की ऐसी बातें सुनकर रघुनंदन कुछ सोच नहीं पा रहे थे कि बच्चे को क्या जवाब दें झूठा दिलासा देना भी ठीक नहीं है नन्ही सी जान।
  
   पहले से ही अपनी मां के आने की झूठी आशा में बैठा रहता है और अगर यह कह दिया कि यह तुम्हारी मां है ही नहीं?
   
  और अगर यह लड़की बाद में अपने घर चली गई।यह परेशान होगा।
  
तो रघुनंदन बोला "नन्दू जब ये होश मै आ जाएगी तो खुद-ब-खुद अपने  नन्दू को पहचान लेगी "।इसलिए पहले इन्हें  ठीक होने दो ।

  रघुनंदन वैध जी के पास पहुंचे वैध जी से कहा कि जल्दी से इस लड़की का इलाज कीजिए अभी उसकी सांसे चल रही है और जिंदा है ।
  वैध जी बोले" प्रधान जी कौन है यह लड़की "?
  
   "इतना बताने का समय नहीं है पहले आप इस की जान बचाइए। इसके होश में आने पर पता चलेगा कौन है ?"
   
नन्दू बार-बार अपने पिता से बस पूछे जा रहा था बाबा मां कब ठीक होगी मुझे पहचान तो लेगी ना मेरी माँ।?

   वैध जी ने अपनी पत्नी को आवाज दी।
   
  बोले इसके "गीले कपड़े बदल दो फिर इसका इलाज शुरू करता हूं" वैध जी की पत्नी ने राधिका के कपड़े बदले और उसके हाथ पैरों पर गर्म तेल की मालिश कर दी।
  
    और प्रधान रधुनंदन सिंह सोच नहीं पा रहे थे कि क्या जवाब दें नन्दू को कैसे झूठा दिलासा दे।
    
     हां करें कि तेरी मां है तुझे पहचान लेगी और फिर यह भी तो कहते नहीं बनता यह तेरी मांँ  है।
     
      बहुत ही बड़ी दुविधा में फंस चुके थे प्रधान रधुनंदन सिंह थोड़ी देर के इलाज के बाद राधिका को होश आ गया।
वैध जी ने गर्म गर्म काढ़ा और देसी दवाइयां दी।

       सुनिए बिटिया को होश आ गया इतना सुनते ही नन्दू भीतर की ओर भागा और पीछे पीछे रघुनंदन भी।
       
        नन्दू फौरन जाकर राधिका से मांँ कहकर लिपट गया 
        राधिका को कुछ समझ नहीं आया लेकिन नन्दू के इस तरह गले लगने से उसके मन में  नन्दू के लिए ममता जाग गई उसने भी कह दिया हांँ बेटा।
        
        नंदू राधिका को छोड़कर अपने बाबा से बोला" देखो बाबा मैं कहता था ना मांँ मुझे पहचान लेगी"।
        
        मेरी मां ने मुझे पहचान लिया अब जल्दी कीजिए मुझे अपनी मां को घर लेकर जाना है और उनको घर दिखाना है।
         नंदू को ऐसा लग रहा था जैसे उसे कोई अनमोल खजाना मिल गया है अनमोल खजाना उसे फिर से ना कोई छीन  ले।
        
        रघुनंदन जी बोल "एक मिनट रुको  बाहर मेरा इंतजार करो मैं तुम्हारी माँ को लेकर आता हूं" तो   नन्दू बोला "ठीक है बाबा मैं बाहर हूं जल्दी लेकर आना माँ को।और यह कहकर वह चला गया।
        
 आपका नाम क्या है और आप इस हालत में कैसे?
 "मेरा नाम  राधिका है। मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है मैं खुद को खत्म करना चाहती थी ।
  उसने अपनी आपबीती सुनाई दी।
  लेकिन आप लोगों ने बचा लिया इस बच्चे को देखा तो मुझसे यह नहीं कहा गया कि मैं तुम्हारी मांँ नहीं हूं" ।कोई बात नहीं लेकिन अब आप रहेंगे कहां जाएंगी कही भी जहाँ किस्मत ले जाएंगी।
   तो रघुनंदन ने  राधिका से कहा अगर आपको ऐतराज ना हो तो आप मेरे घर चल सकती हैं आपको कोई भी असुविधा नहीं होगी और नन्दू भी आपके आने से खुश हो जाएगा।
   तभी वैध जी की पत्नी और वैध जी बोले
   
 क्या सोच रही हो!" बिटिया चली जाओ वह बच्चा कैसे अपनी मांँ के लिए दिन रात तड़पता है हम सब ने देखा है" उसे तड़पते हुए आज तुम्हें देखकर कितना खुश था हमने पहली बार उसको इतना खुश देखा है।
 
  और प्रधान जी भी रोज ना जाने कितने लोगों का भला करते हैं कोई परेशानी नहीं होगी बिटिया तुम्हें इनके घर में ।
 नंन्दू उताबला होता हुआ  बाबा बाबा जल्दी कीजिए। 

 जल्दी आइए ना मां को लेकर अब राधिका खुद को रोक न सकी और  नन्दू के साथ उसके घर चल पड़ी नन्दू आज बहुत खुश था जो भी रास्ते में मिलता उसे कहते हुए जाता देखो यह मेरी मां है मैंने कहा था ना एक न एक दिन मेरी मां जरूर आएगी और रास्ते भर राधिका के साथ बकबक करते हुए आ गया।
  अब आगे क्या राधिका और रघुनंदन साथ रह पाएंगे
  बताइए कहानी कैसी लगी रही है मुझे आपकी समीक्षाओ का इंतजार रहेगा।आपकी लाइक कमेंट ही मेरा हौसला बढ़ाते है।
  
  

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1 Comments

Natasha

14-May-2023 07:38 AM

Mam bahut achi kahani likhi hai apne bs har chapter ka agar ek nam ho to dhundhna or asan ho jayega

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